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जंगल की कहानियां--मुंशी प्रेमचंद


गतांक से आगे

बनमानुष और संतरी

शिकारी ने अबकी संतरी को ताकीद करदी कि खूब होशियार रहे, मगर सोने की हिम्मत न पड़ी । बिजली की रोशनी में बैठे-बैठे गप-सप करके रात काटी । दूसरे दिन तड़के सब लोग शिकार करने चले । गांव के आदमी उन्हें विदा करने के लिये गांव के बाहर तक आये । अच्छी खासी भीड़ जमा हो गई । शिकारी लोग झाड़ियों की आड़ में चलने लगे, जिसमें बनमानुस उनकी आहट पाकर कहीं भाग न जाय । हृब्शी को वह जगह मालूम न थी, जहाँ मादा बनमानुस मरी पड़ी थी । उसी के पीछे.पीछे लोग चले जा रहे थे। जाते-जाते रास्ते में एक जगह बड़ी बदबू आाने लगी। हब्शी सहम कर ठिठक गया और कान लगा कर सुनने लगा। वहीं रोने की आवाज़ सुनायी दी। शिकारी ने अपने साथियों से कहा-तुम लोग बन्दूकें तैयार रखो, मैं आगे-आगे चलता हूँ। मगर अभी दो सौ कदम भी न गया था कि उसे वह बनमानुस नजर आया । मगर वह अकेला न था। उसके जोड़े की लाश भी वहीं पड़ी हुई थी । बनमानुस उस लाश पर झुका हुआ अपने दोनों हाथों से छाती पीट-पीटकर रो रहा था । उसके चेहरे से ऐसा मालूम हो रहा था, मानो वह अपने जोड़े से कह रहा था कि एक बार फिर उठो, चलो यह देश छोड़ कर उस देश में जाकर बसें जहाँ के आदमी इतने निर्दयी, इतने कठोर नहीं हैं। जब वह देखता था कि उसके इतना समझाने पर भी मादा न बोलती है और न हिलती है, तो वह छाती पीट कर रोने लगता था ।

यह हाल देख कर शिकारी का दिल दर्द से पिघल गया। बन्दूक उसके हाथ से गिर पड़ी, शिकारी का जोश ठंढा हो गया। साथियों को लेकर वह डेरे पर लौट आया । सब लोग वहाँ बैठ कर बातें करने लगे-देखो, जानवरों में भी कितनी मुहब्बत होती है, लाश सड़ गई है, मगर नर अभी तक उसे नहीं छोड़ रहा है। उबांशियों ने यह बहुत बुरा काम किया कि उसके जोड़े को मार डाला ।
अभी यही बातें हो रही थीं कि देखा कई आदमी एक लाश लिये चले आ रहे हैं। शिकारी लाश को फौरन पहचान गया । यह उस संतरी की लाश थी । मालूम हो गया कि उसी बनमानुस ने रात को उसे मार डाला है। शिकारी क्रोध से अन्धा हो गया, बोला--अब इस दुष्ट को किसी तरह न छोड़ूंगा । ऐसे खूनी जानवरों पर दया करना पाप है । आज उसका काम तमाम करके दी दम लूंगा ।
यह कह कर वह फिर उसी जगह जा पहुँचा, जहाँ मादा मरी पड़ी थी । मगर अबकी बनमानुस वहाँ न दिखायी दिया। तब यह लोग उसके पैर का निशान देखते हुए उसकी खोज में चले । आखिर एक पहाड़ी के नीचे से जहाँ एक पहाड़ी नदी बहती थी, बनमानुस आता हुआ दिखायी दिया । उसकी देह से बूंद-बूंद पानी टपक रहा था । मालूम होता था अभी नहाकर निकला है। शिकारियों को देखते ही पहले तो वह गरज उठा, फिर किसी शोक में डूबे हुए आदमी की तरह छाती पीट-पीट कर रोने लगा। वह लोग चुपचाप खड़े रहे । जब वह बिल्कुल पास आ गया तो अफ़सर ने उसके कंधे पर निशाना लगाकर गोली चलाई। वह ज़ोर से चीखा और गिर पड़ा । उसका एक कन्धा जख्मी हो गया था; पर वह तुरन्त ही दूसरे हाथ के सहारे अफ़सर की तरफ़ दौड़ा । अफ़सर ने अबकी उसकी छाती पर गोली चलाई। शिकारियों ने समझा, उसे मार लिया; मगर वह झट एक चट्टान फाँदकर भागा और जंगल में घुस गया।
शाम होने को थी । अब उसे ढूँढना बेकार समझकर शिकारी डेरे की तरफ़ लौटे । गोकि यह मालूम था कि वह घायल हो गया है, फिर भी लोगों ने पहरे का बन्दोबस्त किया ओर खा-पीकर सोये। रात-मर सब लोग आराम से सोते रहे । अफ़सर साहब की नींद खुली ही थी कि एक हब्शी दौड़ा हुआ आया और बोला-साहब, वह तो फिर रो रहा है । अफ़सर ने ध्यान से सुना, हाँ, यह तो वही रोने को आवाज है।
लोगों ने झटपट कपड़े पहिने और बन्दूकें लेकर रवाना हो गये। उस जगह पहुँचकर ये लोग झाड़ियों की आड़ से दोनों बनमानुसों की अन्तिम प्रेम-लीला का तमाशा देखने लगे--देखा कि वह अपने जोड़े की लाश को अपने खून से रंगी हुई छाती से दबाकर रो रहा है। उसकी आंखों में नशा-सा छाया हुआ मालुम होता था, जैसे कोई शराब के नशे में चूर हो । यह दर्दनाक माजरा देखकर शिकारियों की आंखें भी आंसू से तर हो गईं । यह तो मालूम ही था कि वह अब चोट नहीं कर सकता। शिकारी उसके बिल्कुल पास चला गया कि अगर हो सके तो उसे जीता पकड़कर मरहमपट्टी की जाय । उसे देखते ही बनमानुस ने बड़ी दर्दनाक आँखों से उसकी ओर देखा, मानो कह रहा था-क्यों देरी करते हो, एक गोली और चला दो कि जल्द इस दुःख-भरे संसार से बिदा हो जाऊं ?
शिकारी ने ऐसा ही किया। एक गोली से उसका काम तमाम कर दिया। इधर बंदूक की आवाज हुई, उधर बनमानुस चित हो गया। मगर आावाज के साथ ही शिकारी का दिल भी काँप उठा। उसे ऐसा मालूम हुआ, मैंने खून किया है, मैं खूनी हूँ ।

  

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